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रे सखि




रे सखि!    (चौपाई)


रे सखि! सावन बनकर आओ।

अमृत जल से अब नहलाओ।।

नाचो आ मेरे आँगन में।

सदा बरसना मेरे मन में।।


बन जाओ तुम आज बदरिया।

आओ ओढ़ी प्रेम चदरिया।।

कुहूँ-कुहूँ कोयल बन जाना।

मधुर कण्ठ से गीत सुनाना।।


रे सखि!आओ देर न करना।

अंकपास में भर ले चलना।।

आज तुम्हारा प्रेम बुलाता।

अपने अधरों से सहलाता।।


निष्ठुर मत बन जाना सखिया!

बनकर आना प्रेमिल दरिया।।

प्रेम रंग का बन जा सागर।

भर देना यह रीता गागर।।


खो जाना बाहों में आ कर।

बन जा पावन गंगासागर।।

अब हरषाओ मन बहलाओ।

रे सखि!प्रीति सरस बन जाओ।।


मत नाराज कभी तुम होना।

प्रेम पंथ पर ममता बोना।।

प्रेम-अश्रु अब छलक रहा है।

अपलक तुझको देख रहा है।।


तेरे भीतर झाँक रहा है।

निर्मल मन को माँग रहा है।।

बन निसर्ग आ उर के अंदर।

दरिया बनकर बहो निरन्तर।।


झरना बनकर झरझर बहना।

पंछी बनकर कलरव करना।।

चूम-चाट की अलख जगाओ।

बन बसन्त ऋतुराज बुलाओ।।


हरियाली बन धरती पर आ।

कोमलांगिनी तुम उर छा जा।

स्पर्श करो अहसास कराओ।

एकीकरण मंत्र बन जाओ।।


रे सखि!वादा कर मिलने का।

कदम मिलाकर नित चलने का।।

कसम खुदा की तुम आओगी।

जीवन में रस बरसाओगी।।




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2 Comments

Renu

23-Jan-2023 04:56 PM

👍👍🌺

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अदिति झा

21-Jan-2023 10:30 PM

Nice 👍🏼

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